तो भाइयों, हाजिर है अगिनखोर. उनके लिए जो चाहते हैं कि मोहल्ले-बाज़ारों में खामोशी छा जाये और वहां केवल भजन-कीर्तन और जय-जयकारे ही गूंजें, यह शायद थोडा तकलीफ़देह होगा, क्योंकि वे अभी माफ़ीनामे की खुशी ही नहीं मना पाये हैं पूरी तरह.
अगिनखोर उन सभी मुद्दों पर बहस करने की कोशिश करेगा, जिनसे अपने समय का समाज प्रभावित होता है. यह बेहद ठोस रूप से मगर आवश्यक मुखरता से अपनी बातें रखेगा और उनके साथ कोई रियायत नहीं बरतेगा जिनमें इस देश में फ़ैली हज़ारों ज़हरीली शाखाएं अपना ज़हर भर रही हैं और वे खुद उनके प्रचारक बने हुए हैं. इसी तरह हम तालिबानी मुसलिम कट्टरता को भी नहीं स्वीकारेंगे और उसका भी विरोध करेंगे. मगर हमारी समझ है कि वर्तमान हालात में भारत में मुसलिम कट्टरता हिंदुत्ववादी कट्टरता की प्रतिक्रिया में पैदा हुई है और फल-फूल रही है.
इसके अलावा ब्रह्मणवादी आतंक की भी हम मुखालिफ़त करेंगे.
...और अनगिनत मुद्दे हैं जिनपर हमारी नज़र रहेगी.
तो मिलते हैं.
Sunday, April 22, 2007
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4 comments:
आपका स्वागत है.. आशा है आप अपने नाम को सार्थक सिद्ध करते हुये जहाँ आग लगी देखेंगे, खायेंगे.. अपनी तरफ़ से लगायेंगे नहीं..
हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है। आपका ब्लॉग HindiBlogs.com में शामिल कर लिया गया है।
अभय भाई, इच्छा तो आग खाने की ही है और खायेंगे भी. आपलोगों का सहयोग चाहिए. दिन रात की छीछालेदर और कांव कांव अच्छी नहीं लगती. मगर कुछ ज़हरखुरानी वाले घूम रहे हैं, वे ज़्यादा खतरनाक भी हैं. अगिनखोरी उनके लिए शायद न हो. फिर भी कोशिश करूंगा.
आज के जमाने मे अगिनखोर ही सही मायने में जी सकता है भैया।
स्वागत है आपका, सुभकामनाओं के साथ
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