Thursday, April 26, 2007
बच्चन ने सब कुछ बेचा, अपनी हंसी भी.
पांच क रोड़ में बिका शादी का प्रसारण अधिकार !
खबर है कि अमिताभ बच्च्न ने अभिषेक और ऐश्वर्या की शादी के प्रसारण अधिकार ब्रिटेन स्थित एक चैनल, ट्रेवल एंड लिविंग, को पांच करोड़ में बेच दिया था. बॉलीवुड के आंतरिक सूत्रों के मुताबिक यह सौदा पांच करोड़ में तय हुआ है, हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि असली रकम इससे कहीं अधिक हो सकती है. यह पहले से ही माना जा रहा था कि बच्चन परिवार स्थानीय मीडिया को व्यापारिक कारणों से शादी की कवरेज से दूर रख रहा है.
फिल्म उद्योग के एक सूत्र का क हना है कि `यदि वे शादी का प्रसारण अधिकार पहले ही एक चैनल को बेच चुके थे तो वे स्थानीय मीडिया को इजाजत नहीं दे सकते थे.'
यहां तक कि वे फोटोग्राफर, जिन्होंने शादी की तसवीरें खींचीं, एक गोपनीय अनुबंध से बंधे थे कि वे मीडिया में उन तसवीरों को जारी नहीं क रेंगे. माना जाता है कि बच्चन परिवार ने पहले हैलो नाम की टॉप ब्रिटिश लाइफ स्टाइल पत्रिका से बातचीत की थी, पर मगर सौदा न हो सका. भारत स्थित एक टीवी नेटवर्क द्वारा भी प्रस्ताव भेजा गया था, मगर वह भी स्वीकृत नहीं हुआ. सूत्रों का कहना है कि बच्चन परिवार किसी विदेशी चैनल की तलाश में था.
यह भारतीय फिल्मोद्योग की दुनिया में अपनी तरह का पहला सौदा था. इससे पहले किसी भी शादी का प्रसारण अधिकार मीडिया को नहीं बेचा गया था. इस मामले में बच्चन परिवार ने लिज हर्ले और अरुण नायर की शादी से होड़ ली, जिन्होंने २० लाख पाउंड में अपनी शादी का प्रसारण अधिकार हैलो को बेचा था. मगर इसमें एक अंतर था. लिज हर्ले और अरुण नायर ने स्थानीय पत्रकारों के लिए भी तसवीरें खिचवायीं, जबकि बच्चन परिवार ने ऐसा नहीं किया.
तो देखा भाइयों, कैसे एक धन पशु, जिसे बाज़ार ने महानायक बना दिया है, अपनी खुशी (और मौका मिलेगा तो गम भी, जिसकी झलक हम उसके कवि पिता की मौत पर देख चुके हैं) के क्षणों को भी बेच कर नोट खडे़ कर करने को तैयार है. यह है हमारी 'कला' जिस पर हम नाज़ करते हैं.
बताता चलूं कि यह खबर टाइम्स आफ़ इंडिया में 24 अप्रैल को और प्रभात खबर में 25 को छपी है.
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7 comments:
are bhai aaj ke "times of india" ka bachhan sahab ka interview bhi dekh lete....................
yun jhooth mooth afwaho ko hawa dene se kya fayeda????????????
अजित को
पढा है भाई. मगर क्या हम उन्हें ही स्रोत के रूप में लें जो अपनी विश्वसनीयता खो चुके हैं? अमिताभ ने इतने विग्यापन किये हैं और इतने प्रायोजित संदेश दिये हैं कि वे कब विग्यापन कर रहे हैं और कब सच बोल रहे हैं यह पता ही नहीं चलता. और इसे वे स्वीकार क्यों करेंगे कि उन्होंने शादी के अधिकार बेच डाले थे? वे बाज़ार के धनपशु बन चुके हैं और इसके पर्याप्त सबूत हैं. आप समयांतर नहीं पढते? देखा किजिए...बहुत अच्छी पत्रिका है.
कला के साथ पैसे को क्यों नकारते हैं आप? आप अमिताभ को छोड़िए और उन्हें याद कीजिए जिनकी कला का मोल उन्हें जीते जी नहीं मिला और आज कई लोग उनके नाम से पेट भर रहे हैं।
प्रेमचंद और निराला किस हाल में दुनिया से गए आप जानते ही होंगे। साहित्य ही क्यों फिल्मी दुनिया में कई अपने जमाने के कई सितारे भूखों मर गए। आज के फिल्म कलाकार अधिक पेशेवर हो गए हैं, अधिकतर के होटल, रेस्टॉरेंट, बुटिक या अन्य कोई व्यवसाय हैं। ये जानते हैं कि एक न एक दिन उन्हें रुपहले पर्दे से हटा कर कोई और आ जाएगा, तब उनकी सिनेमा की दुकान नहीं चलने वाली है। इसलिए सबका अभिनय के अलावा भी कोई अन्य व्यवसाय है। मित्तल ने आर्सेलर को खरीदा क्योंकि उसे अपना व्यवसाय और बढ़ाना था। इसी हच को वोडाफ़ोन ने खरीदा। अमिताभ इस शादी को लेकर क्या करते हैं ये उनका व्यक्तिगत मामला है। कोई बाध्यता है नहीं कि भारतीय मीडिया को कुछ बताया ही जाए। और हमें कोई रुचि नहीं उस शादी को देखने में। वैसे भी जिसकी कंपनी डूब गई थी, जिस पर कभी करोड़ों का कर्जा था, जिसका घर कभी बिकने वाला था, जो कभी यश चोपड़ा से काम माँगने गया था उसके लिए पैसे की यही अहमियत हो जाती है।
महानायक बनाना या शिखर से उतार देना जनता का काम है। सलमान ने कितनी वारदातें की हैं फिर भी उनका एक प्रशंसक वर्ग है।
अगिनखोर जी, आश्चर्य हुआ कि एक ओर जहाँ क्रिकेट को अत्यधिक कवरेज देने के लिये आप मीडिया को दोष देते हैं, वहीं दूसरी ओर बच्चन परिवार की शादी की 'पर्याप्त' कवरेज न मिल पाने पर आप मीडिआ के साथ सहानुभूति रखते हैं. कोई कवरेज अधिकार न होने पर तो ये आलम था कि पिछ्ले एक महीने तक क्रिकेट और इस शादी को छोड़कर किसी चैनल पर और कोई खबर नहीं थी, कवरेज अधिकार होने पर जाने क्या होता.
यदि आपको बच्चन की धन-पशुता दिख रही है, जो अपने पिता की म्रत्यु को भी व्यावसायिक रूप दे देते हैं; तो फिर आपको मीडिया की धन-लोलुपता भी दिखनी चाहिए, जो जूही चावला की माता की शव-यात्रा मे उनसे यह पूछने को उमड़ पड़ा था कि "अब आपको कैसा महसूस हो रहा है? आप हमारे दर्शकों को क्या सन्देश देना चाहेंगी?"
क्षमा करें अगर मेरी प्रस्तुति से आपको यदि यह संदेश गया कि मैं शादी का प्रसारण अधिकार भारतीय मीडिया को दिये जाने का हिमायती हूं और ऐसा न होने पर खफ़ा हो गया हूं. दर असल मैं जो कहना चाहता हूं वह यह है कि सब कुछ बिकाऊ नहीं होता. यह तो बाज़ार है जो हर एक चीज़ को बिकाऊ बना दे रहा है और उसकी खरीद बिक्री बाज़ारों में हो रही है. यह गलत है और हमारी, मेरा मतलब मनुष्य की, सभ्यता के लिए यह खतरनाक है. लगता है हम सहमत हैं, बस थोडा़ भ्रम पैदा हो गया था. मैं बिल्कुल ऐसे किसी भी आयोजन को इतनी अहमियत देने के खिलाफ़ हूं. और अगर यह सौदा भारतीय मीडिया के साथ भी होता तब भी मैं इसका विरोध करता और करना चाहिए.
अतुल जी, मैं कला के साथ पैसे को नकार नहीं रहा. मुद्दा यह है कि आप कला दिखा कर पैसा कमा रहे हैं कि सामान बेच कर. अमिताभ इन दिनों कला दिखा कर नहीं कंपनियों के सामान बेच कर पैसा कमा रहे हैं. क्या समाज में कलाकार की सिर्फ़ यही भूमिका होती है कि वह सेल्स मैन बन जाये और आंख मूंद कर पैसा कमाये? क्या उसकी कोई जिम्मेदारी अपने देश की जनता के प्रति नहीं बनती? किसी भी कलाकार के बारे में इतिहास उसके समाज के प्रति योगदानों के आधार पर निर्णय लेता है न कि उसकी कमाई के आधार पर. सही में प्रेमचंद ने कितना कमाया? और रेणु ने? वे भी चाहते तो खुद को बेच सकते थे. अजय देवगन भी कमा सकते हैं उस तरह,पर वे ऐसा नहीं करते. मगर अमिताभ तो सारी हदें पार कर जाते हैं. कीड़ेवाली कैंडी के बारे में गलत दावा, बेशक पैसा लेकर, करते हैं. और भी दूसरे कलाकार ऐसा ही करते हैं. यह ठीक नहीं है.
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