घातक सिद्ध होगा वालमार्ट का प्रवेश
पीपुल्स न्यूज नेटवर्क की खबर
विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनी वालमार्ट और भारत के भारती ग्रुप के बीच 50-50 प्रतिशत पूंजी लागत पर आधारित खुदरा व्यापार में हाल ही में जो करार हुआ है, वह इस कंपनी का चोर दरवाजे से भारत में प्रवेश का रास्ता मात्र है. 316 मिलियन डॉलर के कुल कारोबारवाले व्यवसाय में ११.2 बिलियन मुनाफा कमानेवाली वालमार्ट कंपनी उस अजगर की भांति है, जो भारत के खुदरा व्यापार को निगल लेने की क्षमता रखती है. अमेरिका के खुदरा व्यापार के 20 प्रतिशत हिस्से पर कब्जा जमा कर बैठ चुकी कंपनी वालमार्ट की नजर अब भारत के खुदरा बाजार पर कुंडली मारकर बैठने की है. विषय यह नहीं है कि वालमार्ट `फ्रंट एंड' का कार्य देखेगी या `बैक एंड' का. यदि सरकार ने इन कंपनियों के प्रवेश को मंजूरी दी है, तो देर-सवेर भारतीय खुदरा व्यापार के लिए यह घातक सिद्ध होगा. भारत के नागरिकों को दो जून की रोटी उपलब्ध कराने का सबसे आसान व्यवसाय खुदरा व्यापार है. भारत का 80 प्रतिशत असंगठित खुदरा व्यापार देश के करोड़ों परिवारों को रोजगार प्रदान करता है. इनमें अधिकतर आबादी उन लोगों की है, जो समाज में या तो हाशिये पर हैं या सरकार की सूची में गरीबी रेखा के ईद-गिर्द नाच रहे हैं. अब इनकी भूख पर देश के पश्चिमी चमक-दमक से प्रभावित नेताओं, उद्योगपतियों एवं विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की गिद्ध दृष्टि लगी है. खुदरा व्यापार पर कब्जा कर वे इनके मुंह से निकला निवाला भी नोच खाना चाहते हैं. राष्ट्रीय व्यापार में घरेलू उद्योग लगभग 70 प्रतिशत हिस्सा है. इसमें असंगठित खुदरा व्यापार का वर्चस्व है. इससे लगभग पांच करोड़ छोटे व्यापारी जुड़े हैं. इस शक्तिशाली क्षेत्र में योजनाबद्ध ढंग से विदेशी पूंजी निवेश की छूट दे दी गयी. यह तो शुरुआत थी, इस क्षेत्र में भविष्य में आनेवाले बवंडर की. विदेशी कंपनियां इस इंतजार में पहले से ही बैठी थीं और उनका रास्ता आसान बनाने के लिए यहां सरकार में बैठे थे प्रधानमंत्री, वाणिज्य मंत्री, वित्त मंत्री एवं योजना आयोग के उपाध्यक्ष. वालमार्ट के मुखिया इस वर्ष के प्रारंभ में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिल कर उन्हें समझा चुके थे. वित्त मंत्री पी चिदंबरम एवं योजना आयोग के उपाध्यक्ष शुरू से ही निवेश बढ़ाने का मंत्र जाप रहे थे. रही-सही कसर वाणिज्य मंत्री कमलनाथ ने पूरी कर दी. उन्होंने जिस दिन कहा कि भारती-वालमार्ट समझौते का अध्ययन करेंगे कि यह ठीक है या नहीं, उसके अगले दिन उन्होंने कह दिया कि इस समझौते से देश में रोजगार का सृजन होगा. काश, कोई इन्हें बताता कि जब भी वालमार्ट कंपनी किसी देश में गयी है, वहां उसने रोजगार का भक्षण किया है, सृजन नहीं. इतना ही नहीं, स्वप्निल-से दिखनेवाले वालमार्ट के मॉल में श्रम कानूनों का स्पष्ट उल्लंघन होता है. इस आरोप में कई बार इन कंपनियों को सजा भी हो चुकी है. स्पष्ट है, खुदरा व्यापार में पहले से कार्यरत छोटे-छोटे खुदरा व्यापारियों का जीना मुहाल हो जायेगा. सरकार ने कभी भी संभावना से भरे इस क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित नहीं किया. सरकार द्वारा प्रतिस्पर्द्धा की बात कह कर देसी विशाल कंपनियों को संगठित खुदरा व्यापार में प्रवेश देना गलत है. दरअसल शुरुआत में सरकारी छूट व सुविधाओं का लाभ उठा कर ये कंपनियां इस क्षेत्र में प्रवेश करती हैं. बाद में अपने को विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हाथों में बेच कर तथाकथित प्रतिस्पर्धा को ही समाप्त कर देती हैं. करीब बीस देशों में पौने तीन हजार से भी अधिक स्टोर चलाने वाली वालमार्ट जैसी कंपनी के लिए देश के सौ-दो सौ स्टोरों को खरीदना बहुत आसान है. प्रसंस्करण, भंडारण, वितरण एवं बिक्री में इनकी इतनी क्षमता है कि छोटी खुदरा कंपनियों की क्या बात, देश की बड़ी कंपनियां भी इनके साथ प्रतिस्पर्द्धा नहीं कर पायेंगी. तड़क-भड़क के अलावा सस्ती दर पर सामान बेचने की इनकी क्षमता वर्षों चल सकती है. ये अपना व्यवसाय बिना मुनाफे के सालों चला सकते हैं. तब तक छोटे दुकानदारों का तो सत्यानाश हो जायेगा. बाद में इनका बाजार पर एकाधिकार बन जायेगा. इस पूरे प्रकरण में वामपंथियों की स्थिति सांप-छछूंदर जैसी हो गयी है. वे चाह कर भी इस मामले में सरकार का विरोध प्र्रभावी ढंग से नहीं कर पा रहे हैं. उधर सरकार उनकी मजबूरी का फायदा उठा कर एक-के बाद एक जनविरोधी निर्णय ले रही है. चाहे सेज का मुद्दा हो या खुदरा व्यापार का या निवेश का. कथित जनवादी संगठनों के अस्तित्व पर इस प्रकार का प्रश्नचिह्र इतिहास में इससे पूर्व कभी नहीं लगा था. यदि इतने बड़े और गलत निर्णयों के बावजूद वामपंथी दल सरकार को समर्थन देते रहते हैं, तो आनेवाले दिनों में इनका अस्तित्व बचना मुश्किल हो जायेगा. भारती इंटरप्राइजेज एवं वालमार्ट के बीच करार की घोषणा से देश में भूचाल जैसी स्थिति बनना स्वाभाविक है. आनेवाले दिनों में वालमार्ट के विरुद्ध संघर्ष तेज होने की पूरी संभावना है.
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4 comments:
वामपंथी, सत्ता के भागीदार होकर भी कुछ नहीं कर पा रहे.. हम आप क्या करें मित्र.. ? भौतिक जगत में बदलाव लाने लायक अपनी औक़ात है नहीं.. पर अच्छा है कि आप चेतना को सुगठित कर रहे हैं.. समय पड़ने पर काम आयेगी..
इतना तो कर ही सकते हैं कि हम अपने मोहल्ले, कॉलोनी के खुदरा व्यापारी से ही सामान लें जिससे अभी तक लेते आए हैं। अधिकतर ये छोटे व्यापारी अपने घर से व्यापार चलाते हैं और हम जरूरत पड़ने पर उन्हें रात में भी उठा सकते हैं, यहाँ तक कि यदि पास में पैसे ना हों तो ये कॉलोनी के व्यापारी उधार भी दे देते हैं। अब सब के पास क्रेडिट कार्ड अभी भारत में नहीं हैं। खुदा व्यापारी इतने पास होते हैं कि बच्चों को भेज दें, सामान गलत आ गया तो संबंध ऐसे होते हैं कि खुदरा व्यापारी खुले पैकेट भी रख लेता है। वालमार्ट निश्चित रूप से सभी के लिए पास में नहीं होगा। वालमार्ट के उपभोक्ता नव धनाड्य वर्ग, उच्च मध्यम या मध्यम वर्ग होगा। बहुसंख्य जनता वालमार्ट की विशालता देखकर ही उस तक नहीं जाएगी क्योंकि आम जनता की सोच है कि बड़ी सजी-धजी दुकाने मँहगी होतीं हैं।
अब मैं अपनी बात बता दूँ कि मैं जहाँ से सामान लेता आया हूँ वहाँ हमारे दो पीढ़ीयों के संबंध हैं। मेरे ही नहीं बहुत से ग्राहकों के हैं। हम एक दूसरे के परिवार की शादी विवाह, गमी आदि में शरीक होते रहे हैं। अब उस दुकान को कैसे छोड़ सकता हूँ। हो सकता है वालमार्ट पर कुछ रुपया बच जाए पर मेरे पड़ौसी व्यापारी की बात ही कुछ और होगी।
हो सकता है ये मेरी अपनी सोच है परंतु मुझे अपना व्यापारी ही पसंद है।
शायद मेरे जैसे और भी लोग हों जो अपने पास पड़ौस के व्यापारी के पास जाना ही पसंद करें।
अतुल जी, बेशक हमें अच्छा लगता अगर आपकी बातें ही सही साबित होतीं. आप कहते हैं कि आप अपने पुश्तैनी व्यापारी से सामान लेते रहेंगे. मगर यह तो तभी होगा न जब वह व्यापारी बचा रहे? इसकी क्या गारंटी है कि उसे उजाड़ नहीं दिया जायेगा. दिल्ली में तो इसका अभियान शुरू हो ही चुका है और इसमें हमारा सुप्रीम कोर्ट सबसे आगे बढ़ कर वाल्मार्ट की मदद कर रहा है. वाल्मार्ट थोडे़ कोई जोखिम लेगा? वह पूरी तैयारी कर के आयेगा और इसमें हमारे लोकतंत्र की पूरी मदद रहेगी.
और रही बात उसके सब जगह होने की तो यह बडी़ बात नहीं. व्यापारी जानता है कि उसे कैसे ग्राहक बढाने हैं. आप याद करें कि 1991 के बाद कितने देसी उद्योग खत्म हुए, कई नाम गायब हुए और नये नाम सामने आये हैं.
और अगर यह भी न हो तो क्या इसी कारण इसका विरोध नहीं किया जान चाहिए कि यह देश के एक हिस्से में आ गया है और छोटे व्यापारियों को उजाड़ रहा है? दुनिया भर में इसका एक बदनुमा इतिहास है.
अगिनखोर भाई शायद मैं अपनी बात ठीक से नहीं रख सका हूँ। मैं देश के हर प्रदेश के खुदरा व्यापारियों की वस्तुस्थिति के बारे में नहीं जानता परंतु संभवत: जो स्थिति मेरे शहर इन्दौर (मध्य प्रदेश) की है कमोबेश वही सब जगह होना चाहिए। शहरों में बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जिसकी क्रय क्षमता बहुत कम है और यह वर्ग किसी बड़े मॉल में कभी नहीं जाता। यह वर्ग हमेशा अपने घर के पास की छोटी सी दुकान से ही सामान खरीदता है। इन छोटे किराना व्यापारी (आप शायद पंसारी या परचूनी वाला कहते हों) के ये छोटे ग्राहक बड़े शॉपिंग मॉल में नहीं जाते। क्योंकि ये किसी ब्रांड का पैक न खरीद कर खुला सामान खरीदता है क्योंकि उसकी क्षमता उतनी नहीं है और दाल, चावल, तेल, शकर हर वर्ग की आवश्यकता है। निम्न वर्ग कम खरीदेगा या मोटा चावल खरीदेगा परंतु अनाज तो खरीदेगा ही। ऐसा मेरे शहर में होता है। बड़े शॉपिंग मॉल का अलग ग्राहक वर्ग है। और जब इन छोटे व्यापारियों के ग्राहक कहीं और नहीं जाएँगे तो ये बचे ही रहेंगे।
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