स्वामी अग्निवेश
पिछले एक-डेढ़ दशक में उदारीकरण से उपजे उपभोक्तावाद की आंधी में धर्म का एक संगठित स्वरूप सामने आया है. अरबों डॉलर के सालाना कारोबार वाले इस व्यवसाय को सोल सेविंग, यानी आत्मा की सुरक्षा की गारंटी करने का आध्यात्मिक नाम दिया गया है. पर वास्तव में यह आत्मा की रक्षा करने वाला उद्योग बन गया है. बीते दिनों एक न्यूज चैनल द्वारा भारत के आधा दर्जन से अधिक कथित धर्माचार्यों, प्रवचनकर्ताओं को काले धन को सफेद करने की सौदेबाजी करते हुए दिखाने के बाद धर्म के इस संगठित उद्योग का वह विद्रूप सामने आया है, जो प्रकारांतर से धर्म व अध्यात्म की जड़ों को खोखला कर रहा था. धर्म को संगठित स्वरूप देने में जो धर्माचार्य सक्रिय हैं, वे दरअसल एक बिचौलिये या एक व्यापारी की भूमिका में आ गये हैं. वे भक्तों या श्रद्धालुओं से कहते हैं कि मेरी शरण में आओ तो तुम्हें मुक्ति दिलायेंगे. धर्म की सबसे बुनियादी बात और शर्त यह है कि वह पाखंड से रहित होना चाहिए और उसके भीतर अन्याय से लड़ने की भावना होनी चाहिए. आज इसके उल्टा देखने को मिल रहा है. धर्म पाखंड का पर्याय बनता जा रहा है और इसे संगठित करने वाले धर्माचार्य अपने आचरण से धर्म को अन्याय, भ्रष्टाचार और पाखंड का गढ़ बनाते जा रहे हैं. सच यह है कि साधारण मनुष्य को ईश्वर की उपासना करने के लिए किसी बिचौलिये की जरूरत नहीं होनी चाहिए. यह धर्म का मूल तत्व है. लेकिन अगर हर आदमी ऐसा मानने लगे और स्वयं ही ईश्वर की उपासना करने लगे तब तो धर्म के ठेकेदारों की सारी दुकानदारी बंद हो जायेगी. इसलिए वे सामान्य मनुष्यों को बेवकूफ बना कर अपनी नाना प्रकार की वासनाओं की तुष्टि करते हैं. इसका सबसे बड़ा खतरा वह नहीं है, जो दिख रहा है. धर्माचार्य करोड़ों रुपये का लेन-देन कर रहे हैं, वह तो इस पूरे व्यवसाय का एक पहलू है.
धर्म-अध्यात्म को व्यवसाय बना देने से सबसे बड़ा खतरा धर्म में अंतर्निहित शक्ति और आध्यात्मिक तत्वों के लिए पैदा हो रहा है. इसलिए कि ये धर्माचार्य अपने स्वार्थ के लिए न्यायकारी ईश्वर को भी पक्षपाती, खुशामदपसंद और अन्याय व अपराध का माफीनामा देने वाला बनाते जा रहे हैं. वे किसी न किसी तरह से श्रद्धालुओं को समझाते हैं या सीधे तौर पर कहते हैं कि पूजा-पाठ करो, चढ़ावा दो तो वे ईश्वर से उनका पाप माफ करवा देंगे. यह धर्म का स्थापित तत्व है कि पाप कभी माफ नहीं होता. पर इसके नाम पर धर्माचार्य फीस वसूलते हैं, जिससे उनके पास करोड़ों रुपये जमा होते हैं. न्यूज चैनल ने जो खेल दिखाया है, वह इसके आगे की कड़ी है. पाप को पुण्य में बदलने के लिए धर्माचार्य अपने भक्तों का काला धन इकट्ठा करते हैं और फिर उन्हें किसी तरीके से सफेद करते हैं. चैनल ने जो दिखाया वह इसी का विस्तार है. भक्तों के काले धन से अपना खजाना भरना, फिर उसे सफेद बनाना और साथ-साथ एक धंधे के रूप में इसे विकसित करना, इस तरह से यह पूरी शृंखला विकसित होती है. भारत में आस्था का सवाल ऐसा है कि लोग आमतौर पर इस पर सवाल नहीं उठाते हैं. इससे इन कथित धर्माचार्यों को मनमानी करने का मौका मिल जाता है. वे धर्म की आड़ में धन का खेल कर रहे हैं. इसका दूसरा पहलू है राजनेता-धर्माचार्य गंठजोड़ का. देश के लगभग सारे राजनेता किसी न किसी धर्माचार्य या प्रवचनकर्ता की शरण में हैं. वे भक्ति भाव से कम और अपनी जरूरतों के लिए ज्यादा उनके साथ जुड़ते हैं. नेताओं की इस भक्ति- प्रदर्शन से ही आम लोगों को बेवकूफ बनाना आसान हो जाता है. आम आदमी जब देखता है कि उसका प्रतिनिधि या कोई बड़ा नेता अमुक धर्माचार्य को साष्टांग कर रहा है, तो वह भी उस धर्माचार्य की शरण में जाता है, जहां उसे उसकी सारी समस्याओं से छुटकारा दिलाने का आश्वासन दिया जाता है. अभी तो चैनल ने सिर्फ हिंदू धर्म के भीतर की इस विकृति को उजागर किया है, लेकिन यह विकृति सभी धर्मों में आ गयी है. कई कारणों से धर्म के प्रति लोगों का रुझान भी बढ़ा है. धर्माचार्य इसे सकारात्मक दिशा दे सकते हैं, लेकिन वे इसका फायदा उठाने की ही कोशिश करते हैं. सभी धर्मों में इसके अपवाद भी हैं. बहुत से लोग ऐसे मिलेंगे, जो धर्म के पाखंड या अंधविश्वास के बजाय उसके आध्यात्मिक स्वरूप का प्रचार करते हैं, लेकिन ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है. धर्म का विद्रूप स्वरूप निस्संदेह आज सभी धर्मों के लिए चिंता की बात है. इसका विस्तार पूरे देश में है और दुनिया भर में फैला हुआ है. इसे रोकने की जिम्मेदारी हर जागरूक नागरिक की है और पाखंड रहित धर्म का प्रचार करने वालों को भी इसे रोकने के प्रयास करने चाहिए.
भला यह लोगों को मूर्ख बनाना नहीं तो और क्या है?
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1 comment:
धर्म के बारे में अच्छा लिखा है!
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