शशिधर खां
इस बीच तिरंगे से जुड़ी राष्ट्रीय भावना का इतना जोर-शोर से प्रचार हुआ कि लगा, मानो वाकई लोगों के मन में इसके प्रति सम्मान का भाव जगाने की कोशिश की जा रही है. मगर क्या यह सच है? जब देश भर के अखबारों में लोग मॉडलिंग गर्ल बीना रमानी द्वारा तिरंगे की बिकनी पहनकर पर्दे पर आने, एंकर मंदिरा बेदी के तिरंगे की प्रिंटवाली साड़ी पहनकर शो करने और सचिन तेंडुलकर द्वारा विदेश में तिरंगे के आकार का केक काटे जाने को लेकर मजे ले-लेकर चर्चा कर रहे थे, उसी समय भारतीय आजादी की पहली लड़ाई की 150वीं वर्षगांठ मनाने के लिए मेरठ से दिल्ली के लाल किले तक की यात्रा में शामिल युवकों द्वारा रद्दी की तरह तिरंगा फेंक दिये जाने पर कहीं कोई हंगामा नहीं हुआ. रमानी, मंदिरा और तेंडुलकर द्वारा राष्ट्रीय झंडे का अपमान किये जाने के खिलाफ सबसे ज्यादा बौखलाने वाले स्वयंसेवकों तथा शिव सैनिकों का ध्यान इस ओर नहीं गया. ऐसा नहीं माना जा सकता कि यह जानकारी राष्ट्रीय भावना के इन स्वयंभू ठेकेदारों तक नहीं पहुंची होगी. फिर इस बात को लेकर बवाल क्यों नहीं हुआ, जबकि तिरंगा हाथ में लेकर चलने की महज औपचारिकता पूरी करने के लिए पहली गदर का जश्न मनाने देश भर से जुटे आजादी के इन आधुनिक दीवानों ने अपने राष्ट्रीय ध्वज को ऐसे फेंक दिया, जैसे लोग कागज की पुड़िया मूंगफली और भूंजा खाकर सड़कों पर या सार्वजनिक स्थलों पर फेंकते हैं. नाम या बदनाम भले शिव सैनिकों या स्वयंसेवकों का होता हो, लेकिन देश में ऐसे बहुतेरे लोग हैं, जिन्हें राष्ट्रीय भावना की बड़ी-फिक्र है. इस फिक्र की बौखलाहट को प्रचारित करने का उनका अंदाज भी निराला है. इस मामले में किसी ने सवाल उठाया, क्योंकि इसमें वह रंग नहीं आ सकता था, जो बीना रमानी के तिरंगे की बिकनी, मंदिरा बेदी की साड़ी की प्रिंट और सचिन के बर्थडे केक के तिरंगे वाले आकार में आया. ये सारे मामले कोर्ट में आ चुके हैं. कांग्रेस द्वारा पार्टी झंडे के रूप में राष्ट्रीय ध्वज के इस्तेमाल का मामला भी कोर्ट में विचाराधीन है. हमारा समाज अब इतना एडवांस हो चुका है कि अगर बस चले तो राष्ट्रीय भावना के कतिपय ठेकेदार किसी महिला की तिरंगे के रंग की प्रिंटवाली पैंटी या ब्रा और किसी पुरुष के जांघिया का फोटो खींचकर कोर्ट में पेश कर दें. इसलिए कि कानूनन ऐसा करने पर रोक है. राष्ट्रीय ध्वज अधिनियम 1971 में इस आशय का संशोधन करके सरकार को 2005 में एक नया कानून बनाना पड़ा, जिसमें तिरंगे का ऐसा इस्तेमाल रोकने के लिए दंड का विधान है. जैसे लोगों के ऐसा करने पर जनहित याचिका दायर करने वाले का नाम भी अखबार में छपता है, उन्हें सार्वजनिक रूप से कुछ भी करने पर परहेज नहीं है. मामला है कि ब्रा, पैंटी, रूमाल (वह भी महिला का) और जांघिया से जुड़ा तिरंगे के अपमान में जो फ्लेवर आयेगा, वह रद्दी की तरह मोड़-माड़कर फेंके जाने पर नहीं आ सकता, जैसा करने की भी कानूनन मनाही है. प्रश्न है कि राष्ट्रीय भावना की आखिर परिभाषा क्या हो और किस घटना को इसका अपमान माना जायेगा. राष्ट्रीय भावना का नैतिक और धार्मिक भावना से क्या तालमेल है? एक जगजाहिर तसवीर तो यह उभरती है कि राष्ट्रीय भावना का ऐसी किसी घटना से जुड़ा होना जरूरी है, जिसकी `सभ्य' समाज में कथित रूप से इजाजत नहीं है. वैसी घटना से जुड़ी हस्ती (खासकर मॉडल और स्टार) का विदेशों में अपमान हमारे यहां राष्ट्रीय भावना से जुड़ जाता है और वह तत्काल राष्ट्रीय अपमान की श्रेणी में आ जाता है. शिल्पा शेट्टी ने अपनी करोड़ों की कमाई के लिए लंदन में बिग ब्रदर शो किया और उसके साथ हमसफर प्रतियोगिता में शामिल जेड गूडी ने भद्दी गाली दे दी तो राष्ट्रीय अपमान का विषय हो गया. सरकार भी ऐसे हरकत में आ गयी जैसे वास्तव में यह राष्टट्रीय भावना को ठेस पहुंचाने वाली बात हो. मानो शिल्पा शेट्टी का वह शो देश के कल्याण वाला कोई राष्ट्रीय समारोह हो. विदेश मंत्रालय ने ब्रितानी उच्चयोग से क्षमा याचना मंगवायी. लगा जैसे इससे देश का अपमान हुआ हो, लेकिन कमाल की बात तो यह है कि उसी जेड गुडी को लंदन स्थित भारतीय दूतावास ने पर्यटन मंत्रालय की ओर से आयोजित समारोह में आमंत्रित किया. फिर जब जेड गुडी भारत आयी, तो मुंबई और दिल्ली में उसका भव्य स्वागत किया गया. उसी समय ब्रिटेन की सरकार ने अपने यहां काम कर रहे 30 हजार से ज्यादा भारतीय डॉक्टरों और इंजीनियरों को देश छोड़ने का अल्टीमेटम दे दिया. मगर इस मुद्दे पर देश भर में शिल्पा शेट्टी टाइप गरमागरम चर्चा नहीं हुई. है न कमाल की बात. अब क्या यह बहस आवश्यक नहीं कि राष्ट्रीय भावना का मतलब क्या है?
तिरंगेवाली फोटो यहां से ली गयी है.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
3 comments:
राष्टीय भावना क्या है इस पर स्पष्ट विचार नहीं होगा तो भारत का अपमान होता रहेगा एवं हम उपयुक्त कार्यवाही नही कर पायेंगे.
-- शास्त्री जे सी फिलिप
आप पूछ रहे हैं कि राष्ट्रीय भावना का मतलब क्या है. आपके मुंह एकदम सही लगता है.
आपको तो राष्ट्रीय भावना के बारे में वाकई मालूम ही नहीं होगा.
शास्त्री जे सी फिलिप जी
हां इसपर अपने विचार साफ़ कर लिये जाने चाहिए और उन्हें भी जो राष्ट्रीय भावना की कापीराइट लिये फिर रहे हैं. आप आये यह अच्छा लगा.
Post a Comment