Sunday, May 6, 2007

ब्राह्मणों को नाराज़ किया तो ढोना पड़ रहा है पाखाना

बबन रावत
भारत वर्ण एवं जाति व्यवस्था पर आधारित एक विशाल एवं प्राचीन देश है. ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र, इन चार वर्णों के अंतर्गत तकरीबन साढ़े छह हजार जातियां हैं, जो आपस में सपाट नहीं बल्कि सीढ़ीनुमा है. यहां ब्राह्मण को सर्वश्रेष्ठ एवं भंगी को सबसे अधम एवं नीच समझा जाता है.
मनु महाराज अपने ग्रंथ मनु स्मृति में अध्याय 10 के श्लोक 51 से 56 तक में लिखते हैं कि चांडालों एवं स्वपचों के आवास गांव से बाहर होंगे. उन्हें अपात्र बना देना चाहिए. वे चिह्रित प्रतीकों के जरिये पहचाने जायें, दूसरे लोग उनके संपर्क में न आयें. चांडालों का पात्र टूटा हुआ बरतन होगा, भोजन जूठा व बासी होगा, जो दूसरों द्वारा दिया हुआ होगा. इनका कार्य होगा लावारिस लाशों को दफनाना. संपत्ति होंगे कुत्ते व गधे और वस्त्र होगा मुरदों का उतरन.
पराशर स्मृति (अध्याय- छह, श्लोक - 24) तथा व्यास स्मृति (अध्याय-1 /11, श्लोक - 12) में चांडालों के बारे में लिखा गया है कि अगर कोई व्यक्ति चांडाल, स्वपच को भूल से भी देख ले तो उसी समय सूर्य की ओर देख ले और स्नान क रे, तभी वह शुद्ध हो सक ता है.
इतिहासकार झा और श्रीमाली अपनी पुस्तक प्राचीन भारत का इतिहास (पृष्ठ संख्या-310) में लिखते हैं कि जिस प्रकार फाहियान ने पांचवी शताब्दी में अछूतों का वर्णन कि या है, उसी प्रकार ह्वेनसांग ने भी अस्पृश्यता का उल्लेख किया है. वह लिखता है कि कसाई और मेहतर नगर के बाहर ऐसे मकानों में निवास क रते थे, जो विशेष चिह्र से जाने जा सकते थे. साधारणत: चांडालों की श्रेणी से मेहतर और डोम नाम की जाति प्रकट हुई, जिनका पेशा सड़कों और गलियों को साफ करना, विष्ठा(मल)उठाना, श्मशान में शवों को दफन करना, अपराधियों को फांसी पर लटकाना और रात में चोरों को पक ड़ना था.
यदि जैन स्रोतों पर विश्वास कि या जाये तो आज के भंगी समाज के लोग ब्राह्मणवाद के शिकार हुए हैं. भंगी का अर्थ होता है भंग कि या हुआ अर्थात समाज से टूटे तथा बिछड़े हुए लोग अथवा दंड देक र या बहिष्कृत कर निकाले हुए लोग. एक दूसरे मत के अनुसार गुप्त काल में भूमि हस्तानांतरण अथवा भूमि राजस्व की प्रथा से कायस्थों के रूप में एक नयी जाति का जन्म हुआ, जिन्होंने ब्राह्मणों के लेखन संबंध एकाधिकार को चुनौती देते हुए उनके वर्चस्व को समाप्त क र दिया. यही कारण है कि परवर्ती ब्राह्मण साहित्य में कायस्थों की बड़ी भर्त्सना की गयी है, उन्हें शूद्र तक कहा गया है.
ठीक उसी समय (गुप्त काल) उत्तर भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में गांव के सरदारों और मुखिया की एक श्रेणी उभर कर आयी जो महत्तर कहलाते थे. उन्हें जमीन की अदला-बदली की सूचना दी जाती थी, जो बाद में एक जाति के रू प में परिणत हो गये. संभवत: आज के मेहतर ही गुप्त काल में महत्तर कहलाता हो. और गुप्तकालीन महत्तर का अपभ्रंश होकर आज मेहतर हो गया हो, जिसका आधिपत्य मुखिया और सरदार के रू प में उत्तर भारत के गांवों में रहा होगा. मेहतर समाज के सामाजिक ढांचे में भी पुराने समय से मुखिया और सरदारी प्रथा कायम है जो गुप्त कालीन महत्तर समाज से मेल खाता है. हो सक ता है कायस्थों की तरह गुप्त काल में मेहतरों ने भी ब्राह्मणों को चुनौती दी हो और कुपित ब्राह्मणों ने उन्हें भी नीच, पतित और चांडाल घोषित कर समाज से बहिष्कृत कर इनसे शिक्षा और शासन का अधिकार छीन लिया हो. इस तरह मुख्यधारा से कटे तथा समाज से भंग किये हुए लोग कालांतर में भंगी कहलाये हों और सजा के तौर पर मानव के मल को ढोने को मजबूर कर दिये गये हों.
एक दूसरे मत के अनुसार, आर्यों के आक्रमण के समय ऐसा प्रतीत होता है कि आज के भंगी समाज के लोगों ने अन्य मूल निवासियों की तरह साथ मिल कर दुश्मनों के खिलाफ काफी विस्तारपूर्वक संघर्ष किया होगा, जिसे आर्य-अनार्य या देव-असुर संग्राम के नाम से भी जाना जाता है. लेकि न आर्यों की युद्ध विद्या, घुड़सवार शैली एवं छल-प्रपंच के आगे अनार्यों की हार हुई, जैसाकि हमेशा होता है. युद्ध में जो लोग जितनी वीरता से लड़ते हुए दुश्मनों द्वारा पराजित होक र उनकी गिरफ्त में आते हैं, उन्हें उतनी बड़ी सजा भी दी जाती है. हो सक ता है कि लड़ाकू भंगी समाज के लोग आर्यों की गिरफ्त में आने के बाद दास बना लिये गये हों और इनको क ठोर सजा के तौर पर इनसे मानव मल और गंदगी को साफ क रने जैसा घृणित कार्य को जबरन कराया गया हो. जबकि यह सर्वविदित है कि आर्यों के आने के पहले मानव मल ढोने की प्रथा भारत में कहीं नहीं थी.
विश्व की सर्वाधिक पुरानी सभ्यता, सिंधु घाटी के हड़प्पा-मोहनजोदड़ो की खुदाई से भी यह स्पष्ट हो गया है कि उस समय मानव मल ढोने की प्रथा नहीं थी, बल्कि आज की तरह आधुनिक सीवर प्रणाली के शौचालयों का प्रमाण मिलता है. इससे पता चलता है कि मानव से मल ढुलवाने की प्रथा शुरू की नहीं है, बल्कि बाद की है.

34 comments:

Gyan Dutt Pandey said...

जाति का इतिहास रोचक है.
जो हुआ, सो हुआ. मैला ढोना तो अनुचित है. सभ्यता का विकास प्रभावी वैकल्पिक व्यवस्था - तकनीकी विकास का सहारा लेकर ही सम्भव है.है.

Sanjeet Tripathi said...

अच्छा विषय चुना आपने लेखन के लिए।
अभी दो दिन पहले ही समाचार पत्रों में पढ़ा कि सिर पर मैला ढोने की परंपरा हमारे कुछ राज्यों में अभी भी जारी है।
21 वीं सदी में भी हम कितने आधुनिक हैं ना

हरिराम said...

हर माँ-बाप को अपने बच्चों के टट्टी-मूत तो उठाना ही पड़ता है। तो क्या वे भंगी कहलाएँगे?

Srijan Shilpi said...

तथाकथित शूद्र तो समाज के शोषक प्रभु वर्ग द्वारा सदियों से अकारण दंडित जातियाँ ही हैं।

जाति-प्रथा और अस्पृश्यता जैसी सामाजिक कुप्रथाओं का उन्मूलन टेक्नोलॉजी के प्रयोग और शैक्षणिक-आर्थिक उन्नति के माध्यम से ही किया जा सकता है। सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक आंदोलनों के बूते की बात यह नहीं रह गई है।

मुल्क राज आनंद के प्रसिद्ध उपन्यास The Untouchables में इस तथ्य को बहुत खूबसूरती से दर्शाया गया है। इस उपन्यास में अछूत प्रथा को समाप्त करने के संबंध में की गई बहस अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसमें कहा गया है कि फ्लस सिस्टम वाले टायलेट के प्रयोग को बढ़ावा देकर सिर पर मैला ढोने की प्रथा को सहजता से खत्म किया जा सकता है, उसके लिए गांधीजी द्वारा की जा रही हरिजन-उद्धार की उदारवादी कोशिशों के बचकानेपन की जरूरत नहीं है। इस उपन्यास की पांडुलिपि खुद गांधीजी ने पढ़ी थी और संशोधनों के साथ उसे अनुमोदित भी किया था।

राहुल सांकृत्यायन की वोल्गा से गंगा नामक चर्चित किताब भी भारतीय समाज में जाति प्रथा के पदानुक्रम में ढलने की ऐतिहासिक प्रक्रिया को कथात्मक अंदाज में प्रस्तुत करती है।

Pratik Pandey said...

बढ़िया लेख है। आपकी अन्य सारी बातें मानीं, लेकिन यह आर्य-अनार्य युद्ध की आपकी व्याख्या प्रथमदृष्ट्या पूरी तरह अतार्किक प्रतीत होती है। इस बारे में कुछ तर्क दें तो बेहतर रहेगा।

dhurvirodhi said...
This comment has been removed by the author.
अगिनखोर said...

ज्ञानदत्त पाण्डेय जी
जो हुआ सो तो बुरा ही हुआ, मगर अब भी जो हो रहा है उससे कैसे बचा जा सकता है? आप कुछ सुझाएं हमें. धुरविरोधी जी भविष्य के बारे में पूछ रहे हैं. आप ही शुरू करें कि 'आने वाला कल एसा न हो, इसमें सब बराबर हों.'
क्या उम्मीद करें?

अगिनखोर said...

हरिराम जी
किसी बलात्कार की शिकार लड़की के साथ बलात्कार के दौरान भी तो वही सब होता है न जो एक पत्नी के साथ होता है पति के ज़रिये. तो हमें बलात्कार का विरोध क्यों करना चाहिए. भंगियों की स्थिति से आप अनभिग्य हैं और शायद इससे भी कि आदमी को जीने के लिए कितनी गरिमा की ज़रूरत होती है.

अगिनखोर said...

प्रतीक भाई
बबन जी को कह दिया है. वे जल्दी ही अपनी दलीलों के साथ हाज़िर होंगे.

Atul Sharma said...

भैया अगिनखोर, यहाँ सृजनशिल्पीजी ने बहुत सही कहा है। शायद आंदोलन के बजाय अन्य कारक बेहतर काम करें।
आप किसी गाँव और शहर की जातिगत स्थिति को देखें तो जमीन आसमान का अंतर है। मैं जहाँ काम करता हूँ वहाँ सैकड़ों लोग काम करते हैं। जब हम लंच के लिए जाते हैं तो सब एक साथ बैठते हैं कोई किसी की जाति नहीं पूछता, यहाँ तक कि यह बात भी किसी के मन में नहीं उठती। यह एक महानगर की स्थिति है। यहाँ इस बात पर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता।
आप आज से पचास या फिर पच्चीस साल पहले की आज की स्थिति की तुलना करें तो यह सिर पर मैला ढोने की प्रथा बहुत हद तक कम हो गई है। हो सकता कमोबेश बहुस सी जगह पर चल भी रही हो। परंतु समय बीतने यह भी नहीं रहेगी।

Unknown said...

Khoob kahi bhai,
zara woh log bhi padhe jo zamindari chod kar chaukidari kar rahe hain...maila dhone ki pratha aaj bhi jari hai isse badi sharm ki baat aur kya ho sakti hai...Mahatama Gandhi ne bhi apna maila khud dhone ki shuaat ki thi..

Unknown said...

इतने पुरानो के प्रमाण वेद भी है , फिर भी आप लोग नहीं समझ पाए की कायस्थ कौन हैं
कायस्थ कायस्थ ही है , ब्रह्मन और क्षत्रिय नहीं ,जातियां तो ब्रह्मा जी की विशेष अंगो से पैदा हुई है , लेकिन कायस्थ तो ब्रह्मा जी की सम्पूर्ण काया से उतपन्न हुए है

कुछ कायस्थ रजा हुए तो लोगो ने उनकी गाड़ना क्षत्रियो में की , कुछ ने शिक्षा दीक्षा में समाज में योगदान दिया , इसलिए लोगो ने उन्हें ब्राहमण कहा | लेकिन कायस्थ कायस्थ ही है , ब्राहमण या क्षत्रिय नहीं
यद्यपि चित्रगुप्त भगवान की पत्नी( कायस्थ कुल माता ) ब्राहमण पुत्री थी ,लेकिन वंश पिता का ही चलता है यह ज्ञात होता चाहिए आपको

Unknown said...

कायस्थ उत्पत्ति

चित्र इद राजा राजका इदन्यके यके सरस्वतीमनु ।

पर्जन्य इव ततनद धि वर्ष्ट्या सहस्रमयुता ददत ॥ ऋगवेद ८/२१/१८

श्री चित्रगुप्त उत्पत्ति भविष्य पुराण - आधारित

पुलस्त्य - भीष्म पितामह संवाद |

भीष्म - पितामह ने पुलस्त्य जी से प्रशन किया कि हे महाप्रज्ञ अब मै निश्चय सुनना चाहता हूँ कि कायस्थ तीनो लोक में विख्यात और दानी, माता - पिता कि भक्ति परायण, ज्ञान वान और सर्व शास्त्रों, कविता, अलंकार के जानने वाले, अपनी जाति और ब्राह्मणों के पालक किसने रचे है आप मेरे से कहिए ? पुलस्त्य जी ने कहा कि हे गंगा पुत्र भीष्म, जिस अव्यक्त पुरुष से लोक पितामह ब्रह्माजी हुए, उन्होंने जैसे वैश्य को रचा वह सुनो | ब्रह्माजी ने मुख से ब्राह्मण, भुजाओ से क्षत्री, जंघा से वैश्य व पादों से शुद्र रचे | द्विपदा, चतुष्पदा, षट- पदा, पक्षी पशु आदि शरीर से रचे | चन्द्रमा, सूर्य, ग्रह नक्षत्रादी से सृष्टि कि रचना की तब अपने ज्येष्ठ पुत्र कश्यप जी को प्रजा रचने को कहा एवं स्वयं ११ हज़ार वर्ष कि समाधि लगाकर कतल पर बैठ गए | जब ब्रह्माजी ने समाधि भंग कि तो उनके सम्मुख जल में से निकल कर पुरुष श्याम-स्वरुप, कमल नयन, शंख-ग्रीव, पुष्ट शरीर, चन्द्रमा की सी कान्ति मुख वाला, हाथ में लेखनी, दवात, खड़िया कि डली लिए हुए सव्यथ्त जन्म ब्रह्माजी के सम्मुख खड़ा हुआ | उसने अपनी उत्पत्ति ब्रह्माजी के शरीर से बतायी एवं अपना नामकरण करने की प्रार्थना की तब ब्रह्माजी ने कहा कि हे पुत्र | तू जो पुण्य रूप होकर मेरी काया में स्थित रहा इससे तेरी कायस्थ जाति संसार प्रसिद्ध हो | और विचित्र रूप से मेरे शरीर में छिपे रहने के कारण तेरा नाम चित्रगुप्त प्रसिद्ध होगा | तू धर्मराज के पुर में धर्माधर्म का विचार करने के लिए वास कर |

Unknown said...

पदुमपुराण-आधारित

पूर्ण-प्रलय के पश्चात मूल प्रकृति के सिवाए कुछ भी नहीं रहता जो सत्यम कहलाती है | समय आने पर स्वयं भू परमात्मा विष्णु तपोलोक को पधारे | यही शक्ति महा-ब्रह्मा कहलाई जो जनः लोक पानी है, मह लोक जहाँ वायु है पर स्थापित होकर "क्षीर सागर" में शेष सैय्या पर शयन कर रहे हैं | उन्ही परमात्मा नारायण, जिनका पानी में घर है के नाभि प्रदेश केंद्र से एक कमल "पृथ्वी" पैदा हुआ उस पर उसी महाब्रह्मा कि अंश नाम शक्ति कहलाई जिसके चार मुख, (चारों ओर प्रकाशित होने से) हुए | उसी सशक्ति के संकल्प से १४ मनु, रूद्र और धर्म आदि हुए | इन्ही मनुओं में श्री चित्रगुप्त हुए और सारी प्रजा भी उत्पन्न हुई |

कुछ काल पर्यंत चारो वर्ण धर्म से गिरे तो धर्मराज जी ने ब्रह्मा जी से कहा कि श्रृष्टि में मनुष्य अनेक कुकर्मो में फंस गए हैं उनका धर्म कर्म लिखना मेरी सामर्थ्य के बहार है अतः कोई मंत्री दीजिये |

ब्रह्माजी ने ग्यारह हज़ार दिव्य वर्ष समाधि लगायी | तब ब्रह्मा जी के शरीर से बड़ी भुजा, कमल के से नेत्र, शंखाकार गर्दन व चन्द्रमा की सी आभा वाला लेखनी, पट्टी, दवात लिए पुरुष उत्पन्न हुआ | ब्रह्मा जी ने उनका नाम चित्रगुप्त रखा और कहा की तुम सबके धर्मा-धर्म जानने वाले होगे, काल की गति जानने वाले होगे | मेरी काया में स्थित रहने के कारण कायस्थ कहलाओगे | तुम्हारा वर्ण यम होगा, लेखनी शस्त्र दिया जिससे छत्तर धारी कहलायेगा |

Unknown said...

तब ब्रह्मा जी ने आज्ञा दी की हे पुत्र अब तुम पृथ्वी पर जाकर अवंतिकापुरी (अदृश्यपुरी) में तपस्या करो जिसके पूर्ण होने पर तुमको वह शक्ति मिलेगी जिसके लिए तुम उत्पन्न हुए हो | तपस्या पूर्ण होने पर ब्रह्मा जी तैंतीस कोटि देवता अट्ठासी हज़ार ऋषियों सहित वहां पहुंचे और वरदान दिया की तुम अमर रहकर जीवों की काया में स्थित रहकर उनके कर्मा-कर्म जाने वाले होकर उसका हिसाब लिखने में समर्थ हो | श्री चित्रगुप्त पुनः ध्यान मग्न हो गए |

पद्मपुराण-उत्तराखंड, धर्म शास्त्र, अहिल्या कामधेनु एवं यम संहिता आधारित-

एक समय शिव पारवती कैलाश से विचरते हुए सूर्या मुनि के आश्रम पर पधारे | सूर्या मुनि ने आदर सहित आसन दे कर चरणामृत लिया |

Unknown said...

यहाँ शिव जी ने सुशर्मा ऋषि की पुत्री शोभा मति को देख, सूर्य-मुनि से उसका परिचय प्राप्त किया एवं विचार किया की यह कन्या श्री चित्रगुप्त जी अवंतिकापुरी निवासी के योग्य है | उनकी यह सलाह सबको पसंद आई तब सूर्य मुनि को शिव जी ने आज्ञा दी कि वह सकुटुम्ब अवंतिकापुरी चलें | तब सब मिल कर अवंतिकापुरी सुशर्मा जी के आश्रम पर आये एवं सारा वृत्तांत कहा और कहा और विवाह का प्रबंध कराया |

श्री शिव जी ने गुप्त सन्देश द्वारा ब्रह्मादी देवताओं को याद किया एवं विवाह कि तैयारी की | इस प्रकार सानंद सुशर्मा ऋषि कन्या शोभामति (ऐरावती) श्री चित्रगुप्त जी को ब्याह दी गयी | उसी समय सूय-मुनि के पुत्र सिराद्ध-देव की कन्या एवं शोभामति की सखी नंदिनी (दक्षिणा)

भी चित्रगुप्त जी के साथ ब्याह दी गयी |

यह दोनों देवी दो शक्तियां हैं जो हर प्राणी की काय में स्थित रहकर कार्य करती हैं | शोभामती का स्थान बाएं है और हर पल यह प्राणी की नीयत (स्वभाव) को पहचानती है एवं लेखन करती है | नंदिनी जी दायें विराजमान हैं एवं हर प्राणी की स्वांस गिनती और हिसाब रखती हैं |

विवाहोपरांत सब देवताओं ने मिलकर सभा की जिसमे श्री चित्रगुप्त जी को आज्ञा दी गयी की वह कुछ काल पृथ्वी पर रहकर, गृहस्थ धर्म पालन करें व अपना वंश पृथ्वी पर छोड़कर धर्मराज की नगरी यमपुरी में पहुँच उनके मंत्री का काम करें | देवताओं ने वरदान दिया की तुम अमर रहोगे एवं अपने धर्म व ईश्वर आज्ञा का पालन करोगे | जो कोई यम-द्वितीय के दिन तुम्हारा पूजन करेगा उसको स्वर्ग लोक की प्राप्ति होगी |

श्री सुशर्मा ऋषि कन्या ऐरावत जी से आठ पुत्र, चारु, सुचारू, चित्रराख्य, मतिमान, हिमवान, चित्रचारु, अरुण एवं जितेन्द्री उत्पन्न हुए |

सूर्यमुनी पुत्र सिराद्ध देव की कन्या नंदिनी जी के चार पुत्र भानु, विभानु, विश्वभानु एवं वीरभानु उत्पन्न हुए |

Unknown said...

विभिन्न प्रान्तों में कायस्थ महापरिवार:

1. उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखण्ड और छत्तीसगढ- श्रीवास्तव, सूरजध्वज, अष्ठाना, बाल्मीकि, माथुर, गौड, भटनागर, सक्सेना, अम्बष्ठ, निगम, कर्ण और कुन श्रेष्ठ।

2. बंगाल- बोस(वसु), संन, कार, दास, पालित, दत्त, सेनगुप्त, चन्द्र, भद्रधर, नन्दी, घोष, मल्लिक (मलिक), दासमुंशी, डे, मुंशी, पाल, र(राय), गुहा, वैद्य, नाग, करणादि, कुंद, सोम, सिन्हा, रक्षित, मित्रा, नन्दन, विश्वास, सरकार, चौधरी, बर्मन, गुप्त, मृत्युंजय, दत्ता, कुन्डू मित्र, धर, शर्मन, भद्र, अम्हा, पुरकायस्थ, मजूमदार।

3. उडीसा- पटपायक, कानूनगो, दास, बोहियार, मोहन्ती, पाटस्कर।

4. त्रिपुरा- देव।

5. असम- बरूआ, पुरकायस्थ, वैद्य, कलित।

6. गुजरात-चन्द्रसेनी कायस्थ, प्रभु, मेहता, बल्लभ जी, वाल्मीकि, बल्लभी, सूरजध्वज।

7. दक्षिण भारत- मुदालियार, नायडू, पिल्ले (पिल्लई), रेडडी, लाल, कार्णिक, रमन, राव, रढडा, करनाम, लाल।

8. गोवा-दमन-दीव- दवणे, कोकेण, पठारे आदि।

9. सिन्ध प्रान्त- आडवानी, मलकानी।

10. पंजाब- गोविल, लहरी, हजेला, रायजादा, विद्यार्थी, चौधरी, जौहरी, रावत, विसारिया, सिन्हा, नागपाल, कांडपाल, कश्यप, बख्शी, दत्त, मित्र, राय।

11. राजस्थान-गौड, पंचौली, भैया, गुत्तू, सर्भन, फुत्तू, सम्भव, शास्त्री, प्रसाद।

12. तमिलनाडु- तामिल, कनारा, कायस्थ।

13. तकलगूदेशम- तेलगू, कायस्थ।

14. महाराष्ट्र- ठाकरे, पठारे, पाठेकर, चन्द्रसेनी, कारखानीरा, फरणीस, पोलनीस, वनीस, हजीरनीश, मौकासी, चिटणवीस, कोटनिस, प्रभु, चित्रे, मथरे, देशपाण्डे, करोडे, दोदे, तम्हणे, दिघे, सुले, राजे, आपटे, घडदिये, गडकारी, कुलकर्णी, श्रौफ, शांगलू(भांगले), जयवन्त, समर्थ, देशमुख, चौवाल, वमन राजे, त्रिवंकराजे, अधिकारी, जयवंश, खाडिलकर समर्थ।

15. नेपाल- श्रेष्ठ, वैद्य, सिन्हा

Unknown said...

हर काल में कायस्थ सदेव से ही महत्व पूर्ण रहे है

पेश हे कायस्थ महापुरुषों कि एक सूची:

वैदिक युग :

1. श्री धन्वन्तरि आयुर्वेद के प्रवर्तक
2. श्री सुषेण धन्वन्तरि के भाई रावण के राजवैद्य।लक्ष्मण जी को संजीवनी बूटी द्वारा
जीवनदान देने वाले वैद्य।
3.श्री वचक्ष राजा रामचन्द्र जी के मंत्री।राजा लव के मंत्री।
4.श्री सोमदत्त सक्सेना राजा कुश के मंत्री।
5.श्री तनपुरा दास श्री कृष्ण के मंत्री।
6.श्री रंगजी राजा अज के मंत्री।
7.श्री सुमन्त तथा कमल दत्त राजा दशरथ के मंत्री।
पुराण काल :
1.श्री सूत जी पौराणिक कथावाचक।
2.श्री सुशर्मा महाराजा पाण्डु के मंत्री।
हिन्दू चमोत्कर्ष काल
1.आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य (कौटिल्य) तक्षशिला विश्वविद्यालयके आचार्य,मौर्य साम्राज्य के संस्थापक, सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के गुरू एवं प्रधानमंत्री। चाणक्य के नीति के जनक
2.मुद्राराक्षश चंद्रगुप्त मौर्य के मंत्री।
3.श्री शकटार मगध सम्राट महापद्यनंद के प्रधान मंत्री।
4.श्री ब्रहमकांत (सूर्यकांन) सम्राट विक्रमादित्य के प्रधानसेनापति।
5.श्री चतुर्भज सक्सेना चित्रगज-कन्नौज नरेश जयचन्द्र केमंत्री।
6.श्री उदयकान्त पृथ्वीराज-हस्तिनापुर राज्य के वित्त मंत्री।
7.श्री बुद्धिकांत माथुर विक्रमादित्य के न्याय मंत्री।
8.श्री बुद्धिसागर राजा भोज के मंत्री।
9.श्री वाणभट्ट हर्ष चरित्र के रचयिता
10.आचार्य नागार्जुन
11.माध्वाचार्य
12.वल्लभाचार्य
13.समर्थ गुरूरामदास

Unknown said...

प्रशासनिक राजनेता एवं अधिकारी ब्रिटिश दासता काल :


1.लार्ड सत्येन्द्र नाथ सिन्हा बिहार के गर्वनर।
2.राजादिलसुख राय लार्ड कैनिंग द्वारा 20 सितम्बर 1859 को गर्वनर नियुक्ति किए गए।
3.डॉ० राजेन्द्र प्रसाद राष्ट्रपति
4.लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री
5.डॉ० सम्पूर्णनन्द मुख्य मंत्री उत्तर प्रदेश।


सुभाष चंद्र बोस ब्रिटिश शासन के सैन्य लड़े,
स्वामी विवेकानंद और महर्षि महेश योगी दार्शनिकों थे.
जय प्रकाश नारायण कुशल राजनितिज्ञ,
शांति स्वरूप भटनागर, सत्येन्द्र नाथ बोस और जगदीश चंद्र बोस के प्रख्यात वैज्ञानिकों थे.
मुंशी प्रेम चंद, हरिव...ंश राय बच्चन, सत्येन्द्र चन्द्र एक स्वतंत्रता सेनानी, रघुपत सहाय "फ़िराक” गोरखपुरी , डॉ. वृंदावन लाल वर्मा, डा. राम कुमार वर्मा, महादेवी वर्मा, कमला चौधरी, डॉ. धर्म वीर भारती और भगवती चरण वर्मा, सतेन्द्र चंद्र मित्रा
अलख कुमार सिन्हा पहले भारतीय पुलिस महानिरीक्षक था. एस.के., सिन्हा, पीवीएसएम, नेपाल, असम के राज्यपाल और जम्मू एवं कश्मीर के राज्यपाल के लिए भारतीय राजदूत के रूप में सेवा की है.
अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा फिल्म जगत में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है,
राजू श्रीवास्तव हास्य के क्षेत्र में सबसे अच्छा किया है,
मुकेश, सोनू निगम संगीत की दुनिया में,
श्री माताजी निर्मला देवी श्रीवास्तव “सहज योग” के संस्थापक, एक नया धार्मिक है आंदोलन
अम्बररीश श्रीवास्तव एक प्रमुख वास्तु इंजीनियर एवं एक प्रमुख कवि
“क्यू एंड ऐ ” लेखक विकास स्वरूप, (ऑस्कर विजेता फिल्म "स्लमडॉग मिलियनेयर" के रूप में)
आदेश श्रीवास्तव, भारतीय संगीत निर्देशक
• आदित्य श्रीवास्तव, भारतीय अभिनेता
• आशीर्वाद लाल श्रीवास्तव, भारतीय इतिहासकार
• चंद्रिका प्रसाद श्रीवास्तव, भारतीय राजनयिक
• हरि शंकर श्रीवास्तव, भारतीय इतिहासकार
• राजेंद्र श्रीवास्तव, भारतीय शैक्षणिक
• संजीव श्रीवास्तव, भारतीय पत्रकार

Unknown said...

अध्याय १: गैर हिन्दुओं में छुआछूत
आदि मानव अशुद्धि के निम्नलिखित कारण समझता था;
१. कुछ विशेष घटनाओं का घटना
२. कुछ वस्तुओं से सम्पर्क
३. कुछ व्यक्तियों से सम्पर्क
जीवन की जिन घटनाओं को प्राचीन मनुष्य अपवित्रता का कारण मानता था, उनमें निम्नलिखित मुख्य थीं;१. जन्म २. दीक्षा संस्कार ३. वयसंधि ४. विवाह ५.सहवास ६.मृत्यु

गर्भवती माताओं को अशुद्ध माना जाता था और उन्हे दूसरों में अशुद्धि फैलाने वाला माना जाता था। माता की अपवित्रता बच्चो तक मैं फैलती थी।

प्रारम्भिक मनुष्य ने यह सीख लिया था कि कुछ वस्तुए पवित्र हैं और कुछ अन्य अपवित्र। यदि कोई व्यक्ति किसी पवित्र वस्तु को छू दे तो यही माना जाता था कि उसने उसे अपवित्र कर दिया..

इस पवित्रता की भावना का सम्बंध केवल वस्तुओं से नहीं था। लोगों के कुछ ऐसे विशिष्ट वर्ग भी थे जो अपवित्र समझे जाते थे। कोई व्यक्ति उन्हे छू देता तो वह विशिष्ट व्यक्ति छूत लगा हुआ माना जाता था।अजनबी लोगों से मिलना, आदिम पुरुष द्वारा छुआछूत का स्रोत माना जाता था ।

यदि शुद्ध व्यक्ति को किसी सामान्य लौकिक व्यक्ति से दूषित कर दिया गया हो अथवा स्वजाति से ही अपवित्रता हुई हो तो एकांतवास होता ही है। सामान्य दूषित व्यक्ति को शुचि से दूर रहना ही चाहिये। सजातीय को विजातीय से दूर रहना चाहिये। इस से यह स्पष्ट है कि आदिम काल के समाज में अशुद्धि के कारण पृथक कर दिया जाता था।

अशुद्धि को दूर करने के साधन पानी और रक्त हैं। जो आदमी अशुद्ध हो गया हो उस पर यदि पानी और रक्त के छींटे दे दिये जायं तो वह पवित्र हो जाता है। पवित्र बनाने वालों अनुष्ठानों में वस्त्रों को बदलना, बालों तथा नाखूनों को काटन पसीना निकालना, आग तापना, धूनी देना, सुगंधित पदार्थों के जलाना, और वृक्ष की किसी डाली से झाड़फूंक कराना शामिल है।

ये अशुद्धि मिटाने के साधन थे। किंतु आदिम काल में अशुद्धि से बचने का एक और उपाय भी था। वह था एक की अशुद्धि दूसरे पर डाल देना। वह किसी दूसरे ऐसे व्यक्ति पर जो पहले से ही वर्जित अथवा बहिष्कृत होता था, डाल दी जाती थी।

इसी तरह प्राचीन समाज की अशुद्धि की कल्पना आदिम समाज की अशुद्धि की कल्पना से कुछ भिन्न नहीं थी।

प्राचीन रोम में घर की पवित्रता की तरह सारे प्रदेश की प्रदक्षिणा करके बलि देकर प्रादेशिक शुद्धि का संस्कार पूरा होता था। वहीं की न्याय पद्धति में यदि शाब्दिक उच्चारण में कोई अशुद्धि रह जाती तो वादी अपना मुकदमा स्वयं ही हार जाता।
http://whowereuntouchables.blogspot.in/2007/07/blog-post_6722.html

Unknown said...

http://whowereuntouchables.blogspot.in/2007/07/blog-post_6722.html

Unknown said...

http://whowereuntouchables.blogspot.in/2007/07/blog-post_1626.html

अध्याय २ : हिन्दुओं में छुआछूत
अशुद्धि के बारे में हिन्दुओं और आदिम तथा प्राचीन समाज के लोगों में कोई भेद नहीं है।

मनु ने जन्म, मृत्यु तथा मासिक धर्म को अशुद्धि का जनक स्वीकार किया है। मृत्यु से होने वाली अशुचिता व्यापक और दूर दूर तक फैलती थी। यह रक्त सम्बंध का अनुसरण करती थी और वे सभी लोग जो सपिण्डक और समानोदक कहते हैं, अपवित्र होते थे। जन्म और मृत्यु के अतिरिक्त ब्राह्मण पर तो अपवित्रता के और भी अनेक कारण लागू थे जो अब्राह्मणों पर नहीं। शुद्धि के उद्देश्य से मनु ने इस विषय को तीन तरह से लिया है;

१. शारीरिक अशुद्धि
२. मानसिक अथवा मनोवैज्ञानिक
३. नैतिक अशुद्धि

नैतिक अशुद्धि मन में बुरे संकल्पों को स्थान देने से पैदा होती है। उसकी शुद्धि के नियम तो केवल उपदेश और आदेश ही हैं। किंतु मानसिक और शारीरिक अशुद्धि दूर करने के लिये जो अनुष्ठान है वे एक ही हैं, उनमें पानी, मिट्टी, गो मूत्र कुशा और भस्म का उपयोग शारीरिक अशुद्धि को दूर करने में होता है। मानसिक अशुद्धि दूर करने में पानी सबसे अधिक उपयोगी है।

उसका उपयोग तीन तरह से है। आचमन, स्नान तथा सिंचन। आगे चलकर मानसिक अशुद्धि दूर करने के लिये पंच गव्य का सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्थान हो गया। गौ से प्राप्त पाँच पदार्थों गोमूत्र, गोबर, दूध दही और घी से इसका निर्माण होता है।

व्यक्तिगत अशुचिता के अलावा हिन्दुओं का प्रदेशगत और जातिगत अशुद्धि और उसके शुद्धि करण में भी विश्वास रहा है, ठीक वैसी ही जैसी प्राचीन रोम के निवासियों में प्रथा प्रचलित थी।

लेकिन यहीं इतिश्री नहीं हो जाती क्योंकि हिन्दू एक और तरह की छुआछूत मानते हैं.. कुछ जातियां पुश्तैनी छुआछूत की शिकार हैं.. इन जातियों की संख्या इतनी है कि बिना किसी की विशेष सहायता के एक सामान्य व्यक्ति के लिये उनकी एक पूरी सूची बना लेना आसान नहीं.. भाग्यवश १९३५ के गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया एक्ट के अधीन निकाले गये ऑर्डर इन कॉउन्सिल के साथ एक ऐसी सूची संलग्न है..

इस सूची में भारत के भिन्न भिन्न भागों मे रहने वाली ४२९ जातियां सम्मिलित हैं.. जिसका मतलब है कि देश में आज ५-६ करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके स्पर्श मात्र से हिन्दू अशुद्ध हो जाते हैं..हिन्दुओं की यह छुआछूत विचित्र है संसार के इतिहास में इसकी तुलना नहीं है..अहिन्दू आदिम या प्राचीन कालिक समाज से अलग इसकी विशेषताए हैं:

१. अहिन्दू समाज में यह शुचिता के यह नियम जन्म विवाह मृत्यु आदि के विशेष अवसरोंपर लागू होते थे किंतु हिन्दू समाज में यह अस्पृश्यता स्पष्टतः निराधार ही है।

२. अहिन्दू समाज जिस अपवित्रता को मानता था वह थोड़े समय रहती थी और खाने पीने आदि के शारीरि्क कार्यों तक सीमित थी। अशुद्धता क समय बीतने पर शुद्धि संस्कार होने पर व्यक्ति पुनः शुद्ध हो जाता था। परन्तु हिन्दू समाज में यह अशुद्धता आजीवन की है..जो हिन्दू उन अछूतों का स्पर्श करते हैं वे स्नानादि से पवित्र हो सकते हैं पर ऐसी कोई चीज़ नहीं जो अछूत को पवित्र बना सके। ये अपवित्र ही पैदा होते हैं, जन्म भर अपवित्र ही बने रहते हैं और अपवित्र ही मर जाते हैं।

३.अहिन्दू समाज अशुद्धता से पैदा होने वाले पार्थक्य को मानते थे वे उन व्यक्तियों तथा उनसे निकट सम्पर्क रखने वालों को ही पृथक करते थे। लेकिन हिन्दुओ के इअ छुआछूत ने एक समूचे वर्ग को अस्पृश्य बना रखा है।

४.अहिन्दू उन व्यक्तियों को जो अपवित्रता से प्रभावित हो गये हों, कुछ समय के लिए पृथ क कर देते थे मगर हिन्दू समाज का आदेश है कि अछूत पृथक बसें। हर हिन्दू गाँव में अछूतों के टोले हैं। हिन्दू गाँव में रहते हैं, अछूत गाँव के बाहर टोले में बसते हैं।

Unknown said...

abe bhosadi ke tuze pata hai tu kis jati ka chuda hua hai ,, sale pandito ne desh ka satya nash kar diya hai

Unknown said...

दुसरो के उठाये तो

Unknown said...

दुसरो के उठाये तो

Unknown said...

hindu daram koi daram nahi... jo daram manav ko manav se nafarat sikhaye wo daram nahi candaal cokdi hai... hutiyapa hai cutiyapa hai...

Unknown said...

hindu daram ko ek gaali k rupe mai hi dekha jaa sakta...

Unknown said...

or jis din in sabney isis ki tarha hatiyar utha liye to ye khud ki maa bahan k uper chad jayenge...

Unknown said...

मनुस्मृति एक गोरखधन्दा है चातुर्वर्ण अवैज्ञानिक व्यवस्था है सिर्फ शोषण और भगवान,मंदिर,का कर्मकांड पाखण्ड और अंधविश्वास फैला कर श्रमिक वर्ग का शोषण और मनुवाद के नाम पर घण्टी बजाकर दान दक्षणा के नाम पर भिक्षा के नाम पर बिना श्रम के धन कमाने का और मंदिर के चढ़ावे को खाने का धंदा है बस ये एक ऐसा शोषण था और है जिसके पीछे भगवान का तर्क दिया जाता है बहुत चालाकी के साथ लोमड़ी से भी ज्यादा चालाक लोगो ने इस चातुर्वर्ण व्यवस्था को लागू किया
भारत बौद्ध और बुद्ध के मानवता के सन्देश का देश ही जिसे मंदिर और भगवान के नाम पर शोषण का सबसे बड़ा और पुराना अड्डा बना दिया गया लेकिन वक़्त के साथ नया और समानता का मैत्री का समाज फिर आयेगा
जिसको मनुवादियो का तथाकथित भगवान भी नहीं रोक पायेगा

Unknown said...

भंगी जाति नही थी, आतंकी मुगलों ने युद्ध मे हारे गये राजाओ और उनकी राज्य के प्रजाओं को इस्लाम धर्म मानने के लिए बोलता था जो नही मानता उसे मार दिया जाता या अस्पृश्य कार्यो में लगा दिया जाता, भंगी अस्पृश्य लोग को अग्रेजो के समय जाति बना डाली

Unknown said...

aagar ved puran ki bate sach hai to raja harishchandra ke pita ji satyavarat chandal the. jo tri sanku ke name se jane jate hai raja harischandra bhi satya darm ke karan chanda bane visvamitra matang sabri nanakdev budda pegambar mohammd nooh lam yogi masayandra nath gorakh nath sankracharayake guru chandal the nokar hoja raiya miljayege saiya agar parmeshavar ko pane ki tadhp dil mejag e to sabse sarl rasta hai bangi ka nokar banja jase rajaharish chandra bane ye bhakti marg ki sabse uchch saka hai attar mehattar metre atri anusuiya ke dttatre adi adi antme aapkagulam sabhi se sama chahta hai ouar ik sala deta he asa kam kro jisse jyada se jyaj logo ka bhala ho bangi yehi kam karta he use na chota honeka na badha bane ki abhila na savarag uske liye mahtaw rakta hai danyavad

Unknown said...

allah nand ko bolte jo ishavar ka bindu rop hai allah ne kosar ka jam mohamd sab ko diya hai use jamjam ke nam se jante uska ik nam all madmohana bhi hai kuran me nand ka suryanam aytul krsi me ses saya par viraj man vishnu ji ka jikar hai nand me all laji kurban vakhahira nand isvar ko tyag yani kurbani pasnd hai oar matng muni ki shiri krishan ji ne chandal bankar parikxa li yevohi kosar ka jam he ke hamne to tume amrat dena chaha tha parntu tumane use chandal ke karn tukra diya ab ye pani lo shiv ka pahla avtar chandal ka oau mata sati ka chandlini ka he jo putra pita ka virodi hota he use gajraj chandali kabeta ke nam se janajata hai gajraj ka matlab ganesh ji se hai ye menahi misradesh ka itihas kahta hai kanaye kaba ka visnu sahstrnam me trikab nam aya he manus ke liye apni jat ka abhiman bahut hota hai isliye apnijat kobhul ja ouar asi jaga chla ja jaha tuje koi janne wala na ho oar samsan se achi jaga koisijaga nhi jaha satya ko janta ye to sabhi jante he ki ye maya ki dunya he to mebanduo ram ko bhi jano ikram ko jano satya ko bhi jano hakik ya hak ko bhi samjo bhasao ka fer he isvar to ik hi hai ham anato ka nat he wo jo khud anat hai jiske na ma bap ka patatikana hai jo haram kahlata hai

Unknown said...

राजा हरीश चंद्र जी एक डॉम के हाथों बिके कैसे?

Faiyaz Ahmad Fyzie said...

इस विषय पर अब तक का सबसे सारगर्भित लेख, बहुत ही कम शब्दों में पूरी बात कह देना अपने आप में एक हुनर है।
बहुत की सूक्ष्म विवेचित लेख है।