आजकल चिट्ठाकार दो-दो शब्दों पर नहीं शायद दो-दो हाथ कर लेने पर यकीन रखते हैं. तभी तो वे धमकियाते हैं- संभल जाओ वर्ना... कहने की ज़रूरत नहीं कि ऐसे लोगों के पास कोई खास तथ्य या दलील नहीं होती. इसीलिए वे तर्क के बजाय वितंडावाद पर ज़्यादा भरोसा करते हैं.
तो ऐसे लोग ब्लाग जगत में बहुत हैं. और आप उनकी निंदा भी नहीं कर सकते. वे आपको ललकारने लगेंगे-संभल जाओ वरना. हिंदी चिट्ठाकारी के ये अलाना -फलाना, वगैरह-वगैरह ( माफ़ कीजिए, नाम इसलिए नहीं दिये जा रहे क्योंकि इनमें से कुछ ने शायद अपने नाम को पेटेंट करा रखा है और कुछ ने शायद आवेदन दिया हुआ है, अत: हम इनके नाम बिना इनकी लिखित पूर्वानुमति के नहीं ले सकते और हमारा इरादा किसी मुकदमें में फंसने का बिलकुल नहीं है. क्या पता पेटेंट कानून की जगह पोटा कानून से मिलते-जुलते किसी कानून के तहत हमारा एनकाउंटर ही करा दिया जाये. एक राज्य विशेष में तो इसका ठेका मुख्यमंत्री तक लेते हैं, सुना है) .
तो भय्ये, आप बोल नहीं सकते किसी केसरिया रंग में रंगे ब्लाग के खिलाफ़ और न ही किसी भगवा (हत्यारे) मुख्यमंत्री के खिलाफ़, क्योंकि यह देश अपनी आज़ादी की पहली लड़ाई की 150 वीं सालगिरह मना रहा है और इसे आज़ादी का अपच हो गया है. यहां अभी सबके बोलने पर पाबंदी लग जायेगी.
तो भाइयों जिसको संभलना हो वे संभलें ( अविनाश हो सकता है फिर माफ़ी मांग लें ) मगर आप ऐसे ललकारेंगे तो हम नहीं संभलेंगे बल्कि आपकी और मुखालिफ़त करेंगे. और ऐसा करते वक्त बिल्कुल विनम्र और संयत रहेंगे हम.
और हां, एक बात और. हमें आपके विचारों से विरोध है. आपसे नहीं.
Friday, May 18, 2007
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3 comments:
अगिनखोर जी
ठंडा पानी पीजिए, आग बुझाइए, मन शांत करिए, ऐसा अगियाबैताल नाम काहे कि लिए रखे हैं. परकिरती का नियम जो खाता है उसे हगना भी पड़ता है. मुँहझौंसा पहले ही हो गए हैं, अब आगे क्या होगा. जरा पीछे की सोच...
हिन्दी चिट्ठाकारों में बढि़या शगल है. रचनात्मकता की जरूरत किसी को महसूस नहीं होती. एक दूसरों की तांग खिंचाई से किसी का भला नहीं होने वाला. यह जोगलिखी किसी काम न आएगी और ऐसे मोहल्ले भी वीरान हो जाएंगे.
बुरा लगा तो मुआफ मत कीजिएगा.
अगिनखोर जी
देश और समाज के विकास के बारे में अधिक सोंचे यदि सभी ब्लॉगर मित्र तो बेहतर होगा। दोष ढूंढने से कोई महान नहीं बनता बल्कि अच्छाई ग्रहण करने से इंसान बन सकता है हर कोई। ब्लॉगर किस लड़ाई को लड़ रहे हैं समझ नहीं आता। सभी की विचारधारा अपनी अपनी है, नहीं पटती तो छोड़ो सब ओर अपने अपने काम को आगे बढ़ाओ, यही फायदेमंद है। बेहतर इंसान बनने का प्रयास करोड़ों लोगों में सिर्फ चंद लोग ही कर पाते हैं बाकि नहीं, यह तय जानिए। सभी को यह देखना चाहिए कि उसे किस सूची में शामिल होना है.इंसानों की सूची में या हैवानों की में।
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